जन्मते जायते शूद्र:,संस्कारात द्विज उच्यते

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🌞👉 वेदों के विषय में कहा जाता है कि वेदों का अधिकार शूद्रों को नहीं है! वैश्य ,क्षत्रिय एवं ब्राह्मण को है. हां सत्य है यह, वेद विद्या( गायत्री मंत्र एवं योग) का अधिकार शुद्र को नहीं है, किंतु शूद्र है कौन? वेदों ने जन्म से सभी को शूद्र माना है.” जन्मते जायते शूद्र:, संस्कारात द्विज उच्यते अर्थात जन्म से मनुष्य मात्र शूद्र होता है (अर्थात उसमें आलस्य, प्रमाद दुर्व्यसनों के प्रति आसक्ति होती है.) वह संस्कारों को धारण करके दूसरा जन्म ग्रहण करता है. वेद कहीं पर भी यह नहीं कहते कि जन्म से कोई वेश्य , क्षत्रिय, ब्राह्मण होता है. वेद सिर्फ इतना कहते हैं की जन्म से मनुष्य मात्र सिर्फ शूद्र होता है. वह चाहे किसी भी जाति ,कुल या गोत्र में जन्मा हो. वह शूद्र ही है जब तक की वह संस्कारों को धारण नहीं कर लेता.
🌞👉 वैश्य वह हैजो आलस्य प्रमाद दुर्व्यसन आदि से तो ग्रस्त नहीं है किंतु लालची है ,लोभी है. धन के अलावा कुछ नहीं सूझता उसे, सिर्फ धन के पीछे पड़ा रहता है. ऐसे व्यक्ति के लिए वेद कहते हैं कि कोई बात नहीं. ऐसा व्यक्ति गायत्री महामंत्र योग साधना से , इन दुर्गुणों से मुक्त हो जाएगा. इसे अधिकार है वेद विद्या का.
🌞👉 क्षत्रिय वह है जो आलस्य, प्रमाद ,दुर्व्यसनों के प्रति आसक्ति तो नहीं रखता किंतु क्रोध एवं अहंकार से भरा हुआ है. चाहे कुछ भी हो जाए, मर जाए ,मिट जाए किंतु मूंछ नीचे नहीं करूंगा. ऐसे व्यक्ति को भी वेद अधिकार देते हैं कि गायत्री मंत्र योग साधना से यह भी अपने दुर्गुणों से मुक्त हो जाएगा.
🌞👉 ब्राह्मण वह हैजिसका आलस्य ,प्रमाद से दूरदूर तक नाता नहीं है . मांसमदिरा अन्य व्यसनोंके साथ काम, क्रोध, लोभ ,दम्भ, दुर्भाव आदि से रहित है . अहंकार से नाता नहीं है जिसका. ऐसा व्यक्ति जिस किसी जाति, कुल, गोत्र या वंश में पैदा हुआ हो. वह जन्म से ही ब्राह्मणत्व के गुण ले कर आया है, जो उसके पूर्व जन्मों के संस्कारों की वजह से संभव हुआ है. ऐसा व्यक्ति वेद विद्या अर्थात गायत्री महामंत्र योग विद्या का सर्वोत्तम अधिकारी है.
👉 अब आप जहां भी हो, जैसे भी हो, जिस कुल में भी जन्म लिया है आपने. अपने आप का मूल्यांकन कर लीजिए. आप उसी वर्ण के हो.
👉 यदि वेद विद्या के रहस्य का आप व्यक्तिगत रूप से प्रेक्टिकल करना चाहते हैं तो करके देख लीजिए.
👉एक ऐसे व्यक्ति को चुनिए जो जन्म से ब्राह्मण कहलाने वाले कुल में जन्मा हो और आलसी, प्रमादी, मांस ,मदिरा का सेवन करता हो अन्य बुराइयां भी भरी हो जिसमें .
👉उसको दुर्व्यसनों को छुड़वाए बिना गायत्री मंत्र जप योग विद्या में लगा दीजिए और फिर उसके जीवन में क्याक्या होता है? यह देखिए या आप स्वयं मांस मदिरा का सेवन करते हुए बुराइयों को बिना छोड़े, गायत्री महामंत्र वओंकार का जप करने लग जाइए फिर आप चमत्कार देखिए.
👉 दूसरा आप एक ऐसा व्यक्ति चुनिए जो किसी अछूत कुल में जन्मा हो किंतु जो आलस्य, प्रमाद से दूर हो ,मांस मदिरा का सेवन नहीं करता हो अन्य दुर्व्यसन भी नहीं हो उसमें. उस व्यक्ति को भी गायत्री मंत्र योग विद्या की साधना में लगा दीजिए.
👉 अब आप दोनों व्यक्तियों के जीवन में आने वाले बदलावों को ध्यान से नोट करते जाइए.
👉 पहला व्यक्ति जो ब्राह्मण कुल का है. उसका जीवन दिनोंदिन कष्टों से घिरता चला जाएगा. आगे जाकर वह विक्षिप्त अवस्था को प्राप्त कर. पागल होकर दरदर की ठोकरें खाएगा.
👉 जबकि दूसरा व्यक्ति जो अछूत कुल से था. वह दिनों दिन हर क्षेत्र में उन्नति करता चला जाएगा. उसका शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास तीव्र गति से होगा एवं अंत में वह ब्रह्मत्व को प्राप्त कर लेगा.
🌞👉 हिंदुत्व की विडंबना यह रही कि ऋषियों ने जो वर्ण गुणों के आधार पर निर्धारित किए थे. उनको पाखंडियों ने जन्म आधारित कर दिया. निम्न कुल में जन्म लेने वाले शुद्ध सात्विक व्यक्ति को भी वेद विद्या के अयोग्य घोषित कर दिया. इसी विसंगति ने सनातन हिंदू धर्म को पतन के गर्त में धकेल दिया.
🌞👉 आप चाहे किसी भी कुल ,गोत्र या जाति में जन्मे हो. अपने आपको गायत्री मंत्र योग विद्या का अधिकारी तभी मान सकते हो, जब आप अपनी शुद्रताओं का त्याग करोगे. इन को त्यागे बिना आप वेद विद्या के अधिकारी नहीं हैं. बस इनको त्याग दीजिए फिर आप के लिए गायत्री महामंत्र योग विद्या कामधेनु कल्पवृक्ष का काम करेगी, किंतु जो अपने आपको इस योग्य नहीं बना सकते.वे चाहे किसी भी कुल गोत्र या जाति के हो, शूद्र ही हैं.
🌞👉 जिन व्यक्तियों में एक साथ आलस्य, प्रमाद, दुर्व्यसन लोभ ,लालच ,काम ,क्रोध अहंकार आदि भरे हुए हैं.वे शूद्र ही नहीं महा शूद्र हैं

 

 

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